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कश, कशिश और कश्मकश का शायर : रघुपति सहाय ‘फ़िराक’
ये माना ज़िंदगी है चार दिन कीबहुत होते हैं लेकिन चार दिन भी इस शेर में क्या नहीं है, तजुर्बा, हौसला, ताकीद, तंज, सब कुछ। और ये सब कुछ जिसके शेरों में सिमटा हो, उस
सियासत और सिनेमा के ध्यान से गायब ‘ध्यानचंद’
1936 का बर्लिन ओलंपिक, हाॅकी के मैच का हाॅफ टाइम हो चुका था और भारतीय दल महज एक गोल उस समय की सबसे मजबूत और मेजबान टीम जर्मनी पर दाग पाया था।अभ्यास मैच में जर्मनी
स्त्री के धन्यवाद का पर्व – होली
हमारा देश प्रकृति के उत्सव का देश है। ऋतुओं के आगमन, अवसान, परिवर्तन हर क्षण पर हम भारतीय उत्सव मनाते हैं। उत्सवधर्मिता हमें संस्कारों और वंशानुक्रम में मिली है। संवत्सर के प्रारम्भ से अंत तक
कोरोना : महामारी पर तय हो विश्व बिरादरी की जिम्मेदारी
चीन से शुरू हुए कोरोना वायरस कोविड-19 ने आर्थिक रूप से सबसे ज्यादा यूरोप को प्रभावित किया है। इसमें भी इटली की अर्थव्यवस्था इससे सबसे ज्यादा प्रभावित हुई है। ऐसे में अब जरूरत है कि
रक्षाबंधन : दर्पण में परंपराओं के प्रतिबिंब दिखाता पर्व
भारतीय परंपराओं में पर्वों का बड़ा महत्वपूर्ण स्थान है। प्रत्येक पर्व के पीछे कोई न कोई उद्देश्य, कोई कारण है। हमारी पर्व परंपरा मुख्य रूप से प्रकृति आधारित है। सनातन धर्म का प्रत्येक पर्व किसी न
ये वनवास बहुत लंबा था
लोकाभिरामं रनरङ्गधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्।कारुण्यरूपं करुणाकरंतं श्रीरामचंद्रं शरणं प्रपद्ये ॥अर्थ : मैं सम्पूर्ण लोकों में सुन्दर तथा रणक्रीडामें धीर, कमलनेत्र, रघुवंश नायक, करुणाकी मूर्ति और करुणाके भण्डार रुपी श्रीराम की शरण में हूं। द्वार पै बन के
ये आज़ादी…कोरोना के साथ भी, कोरोना के बाद भी
आज देश के नागरिक अपनी स्वतंत्रता की 73वीं वर्षगांठ मना रहे हैं। इतने सालों में यह पहला मौका है जब आज़ादी के इस पर्व को इतनी पाबंदियों के बीच मनाया जा रहा है। ये आज़ादी
दिलों का अज़ीज़, लहजे का लज़ीज़ और वक़्त का जदीद शायर : राहुल अवस्थी
एक दरख़्त था – ऊंचा-पूरा, हरा-भरा, ख़ूब छतनार, बहुत विस्तार लिए। थके-मांदे मजदूर, मुसाफ़िर आते-जाते उसके नीचे छांव पाते, तो सुस्ताने बैठ जाते। समय का सूरज चढ़ता जा रहा था और दरख़्त का व्याप बढ़ता
… सुमिरो पवन कुमार
वो साल था 2013, उन दिनों मैं बतौर स्ट्रिंगर अमर उजाला चंदौसी में कार्यरत था। चंदौसी वही जगह है जहां से हिंदी के महान ग़ज़लकार दुष्यंत कुमार ने अपनी शिक्षा पूरी की है।उसी शहर में
चौथा खंभा : संपादकीय ‘शीर्षासन’
पत्रकारिता दिवस पर हर साल ऐसे पत्रकारों और संपादकों को याद किया जाता है जो नज़ीर छोड़ गए हैं। संकल्प लिए जाते हैं, लेकिन इस पेशे में आ रही गिरावट का मूल्यांकन नहीं किया जाता। देश
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