हमारी संस्कृति प्रश्न करने की, प्रश्नचिह्न खड़ा करने की नहीं
भारत के उपनिषदों में प्रश्न करने से प्रारम्भ हुई है ज्ञान की परम्परा और बनी है भारतीय संस्कृति। लेकिन वर्तमान में उसके सामने चुनौतियाँ कम नहीं हैं। सबसे बड़ा संकट है प्रश्न करने का अभ्यास
![हमारी संस्कृति प्रश्न करने की, प्रश्नचिह्न खड़ा करने की नहीं](https://abhinavchauhan.in/wp-content/uploads/2023/09/yamraj-nachiketa-250x170.jpg)
हमारी संस्कृति प्रश्न करने की, प्रश्नचिह्न खड़ा करने की नहीं
भारत के उपनिषदों में प्रश्न करने से प्रारम्भ हुई है ज्ञान की परम्परा और बनी है भारतीय संस्कृति। लेकिन वर्तमान में उसके सामने चुनौतियाँ कम नहीं हैं। सबसे बड़ा संकट है प्रश्न करने का अभ्यास
![स्त्री के धन्यवाद का पर्व – होली](https://abhinavchauhan.in/wp-content/uploads/2022/07/0f24ef2df1c4a0726d27537dbef22133-250x170.jpg)
स्त्री के धन्यवाद का पर्व – होली
हमारा देश प्रकृति के उत्सव का देश है। ऋतुओं के आगमन, अवसान, परिवर्तन हर क्षण पर हम भारतीय उत्सव मनाते हैं। उत्सवधर्मिता हमें संस्कारों और वंशानुक्रम में मिली है। संवत्सर के प्रारम्भ से अंत तक
![सियासत और सिनेमा के ध्यान से गायब ‘ध्यानचंद’](https://abhinavchauhan.in/wp-content/uploads/2022/08/17-250x170.jpg)
सियासत और सिनेमा के ध्यान से गायब ‘ध्यानचंद’
1936 का बर्लिन ओलंपिक, हाॅकी के मैच का हाॅफ टाइम हो चुका था और भारतीय दल महज एक गोल उस समय की सबसे मजबूत और मेजबान टीम जर्मनी पर दाग पाया था।अभ्यास मैच में जर्मनी
![रक्षाबंधन : दर्पण में परंपराओं के प्रतिबिंब दिखाता पर्व](https://abhinavchauhan.in/wp-content/uploads/2022/07/30_07_2020-raksha_bandhan-250x170.jpg)
रक्षाबंधन : दर्पण में परंपराओं के प्रतिबिंब दिखाता पर्व
भारतीय परंपराओं में पर्वों का बड़ा महत्वपूर्ण स्थान है। प्रत्येक पर्व के पीछे कोई न कोई उद्देश्य, कोई कारण है। हमारी पर्व परंपरा मुख्य रूप से प्रकृति आधारित है। सनातन धर्म का प्रत्येक पर्व किसी न
![ये वनवास बहुत लंबा था](https://abhinavchauhan.in/wp-content/uploads/2020/08/15_19_091390465sri-ram-250x170.jpg)
ये वनवास बहुत लंबा था
लोकाभिरामं रनरङ्गधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्।कारुण्यरूपं करुणाकरंतं श्रीरामचंद्रं शरणं प्रपद्ये ॥अर्थ : मैं सम्पूर्ण लोकों में सुन्दर तथा रणक्रीडामें धीर, कमलनेत्र, रघुवंश नायक, करुणाकी मूर्ति और करुणाके भण्डार रुपी श्रीराम की शरण में हूं। द्वार पै बन के
![ये आज़ादी…कोरोना के साथ भी, कोरोना के बाद भी](https://abhinavchauhan.in/wp-content/uploads/2020/08/covid-independence-day-1-250x170.jpg)
ये आज़ादी…कोरोना के साथ भी, कोरोना के बाद भी
आज देश के नागरिक अपनी स्वतंत्रता की 73वीं वर्षगांठ मना रहे हैं। इतने सालों में यह पहला मौका है जब आज़ादी के इस पर्व को इतनी पाबंदियों के बीच मनाया जा रहा है। ये आज़ादी
![दिलों का अज़ीज़, लहजे का लज़ीज़ और वक़्त का जदीद शायर : राहुल अवस्थी](https://abhinavchauhan.in/wp-content/uploads/2022/09/33515029_1032309470255670_4360944556376588288_n-250x170.jpg)
दिलों का अज़ीज़, लहजे का लज़ीज़ और वक़्त का जदीद शायर : राहुल अवस्थी
एक दरख़्त था – ऊंचा-पूरा, हरा-भरा, ख़ूब छतनार, बहुत विस्तार लिए। थके-मांदे मजदूर, मुसाफ़िर आते-जाते उसके नीचे छांव पाते, तो सुस्ताने बैठ जाते। समय का सूरज चढ़ता जा रहा था और दरख़्त का व्याप बढ़ता
![जिस दिल में प्रेम नहीं उसे दिल न समझा जाए : नवाज़ देवबंदी](https://abhinavchauhan.in/wp-content/uploads/2022/09/Nawaz-Deobandi-2-250x170.jpg)
जिस दिल में प्रेम नहीं उसे दिल न समझा जाए : नवाज़ देवबंदी
ग़ज़ल सम्राट जगजीत सिंह की गायी ग़ज़ल ‘‘तेरे आने की जब खबर महके, तेरी खुश्बू से सारा घर महके’’ सुनते ही आप प्यार में डूब जाते हैं। प्यार की इस खुश्बू को हम तक पहुुंचाने
![चौथा खंभा : संपादकीय ‘शीर्षासन’](https://abhinavchauhan.in/wp-content/uploads/2022/11/Sam-1-250x170.jpg)
चौथा खंभा : संपादकीय ‘शीर्षासन’
पत्रकारिता दिवस पर हर साल ऐसे पत्रकारों और संपादकों को याद किया जाता है जो नज़ीर छोड़ गए हैं। संकल्प लिए जाते हैं, लेकिन इस पेशे में आ रही गिरावट का मूल्यांकन नहीं किया जाता। देश
![चीज़ नहीं, अज़ीज़ होती हैं बेटियाँ](https://abhinavchauhan.in/wp-content/uploads/2022/12/Screenshot-60-250x170.png)
चीज़ नहीं, अज़ीज़ होती हैं बेटियाँ
सहालग के मौसम में तमाम लोगों के घरों में खुशियाँ आती हैं। बरसों से चली आ रही परंपराओं को निभाया जाता है। लेकिन अब नया दौर है। हर परम्परा पर सवाल उठाए जाते हैं। खुद
… सुमिरो पवन कुमार
वो साल था 2013, उन दिनों मैं बतौर स्ट्रिंगर अमर उजाला चंदौसी में कार्यरत था। चंदौसी वही जगह है जहां
आसान कहने के लिए आसान होना पड़ता है : मदन मोहन ‘दानिश’
समकालीन उर्दू शायरी का एक महत्वपूर्ण नाम हैं मदन मोहन ‘दानिश’। ग्वालियर में आकाशवाणी के जिम्मेदार अधिकारी पद से सेवानिवृत्त
कश, कशिश और कश्मकश का शायर : रघुपति सहाय ‘फ़िराक’
ये माना ज़िंदगी है चार दिन कीबहुत होते हैं लेकिन चार दिन भी इस शेर में क्या नहीं है, तजुर्बा,