ये आज़ादी…कोरोना के साथ भी, कोरोना के बाद भी
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- अभिनव 'अभिन्न'
- August 15, 2020
- नज़रिया
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आज देश के नागरिक अपनी स्वतंत्रता की 73वीं वर्षगांठ मना रहे हैं। इतने सालों में यह पहला मौका है जब आज़ादी के इस पर्व को इतनी पाबंदियों के बीच मनाया जा रहा है। ये आज़ादी की सालगिरह का वो अवसर है जब देश को इन हालातोें से सीख लेकर भविष्य पर विचार कर लेना चाहिए।
74वें स्वतंत्रता दिवस को देश कोरोना संकट के बीच मना रहा है। हर बार बच्चों से खचाखच भरा रहने वाला लालकिले का मैदान इस बार खाली था। प्रधानमंत्री ने वहां मौजूद अतिथियों के समक्ष अपना संबोधन प्रस्तुत किया। प्रधानमंत्री के भाषण का हर बार की तरह विपक्ष, मीडिया और विश्लेषक अपनी तरह से विश्लेषण करेंगे। इसके लिए पर्याप्त अवकाश है, इसलिए मैं उसका आकलन करने पर अपना समय नष्ट नहीं करूंगा। लेकिन हां, प्रधानमंत्री के आज के भाषण में देश के लिए क्या संदेश है इस पर तो निगाह लेकर जानी ही होगी।
प्रधानमंत्री के माध्यम से देश ने विश्व को ये संदेश तो दे ही दिया कि अब भारत आतंकवाद और विस्तारवाद किसी को सहन नहीं करेगा। देश की प्रधान प्राचीर से ये संदेश देशवासियों में हौसला और हिम्मत दोनों बंधाता है। इससे पूर्व ऐसे कम ही अवसर आए हैं जब किसी अन्य प्रधानमंत्री ने इस सख्त भाषा में देश की ओर से विश्व बिरादरी को यह संदेश दिया हो।
प्रधानमंत्री का सारा जोर देश की आर्थिक स्थितियों के सुदृढ़िकरण पर दिखाई दिया। प्रधानमंत्री ने आत्मनिर्भर भारत के जिस मंत्र को कुछ समय पूर्व दिया था, उसे मूर्त रूप तक पहुंचाने के लिए लालकिले से खाका तय कर दिया लगता है। लेकिन खाके में कुछ सुराखों को सरकार अभी नहीं देख पा रही है या नज़रअंदाज़ कर रही है, उन पर निगाह ले जाना बहुत ज़रूरी है।
बेशक भारत सरकार अपना श्रेष्ठतम देने का प्रयास कर रही है। लेकिन श्रेष्ठतम देने के प्रयास और श्रेष्ठतम कर गुज़रने के बीच के अंतर को समाप्त कर देना ही आपको पिछली सरकारों से भिन्न बनाता है। इस मामले में बहुत हद तक मोदी नेतृत्व वाली सरकार कामयाब दिखाई देती है, लेकिन कारगर नहीं दिखती।
मैं जानता हूं मेरे इतना लिखने भर से ही तमाम लोग व्याकुल हो उठेंगे। लेकिन इस पर विचार तो किया ही जाना चाहिए। जिन बिंदुओं की ओर प्रधानमंत्री इस 74वें स्वतंत्रता दिवस पर ध्यान दिलाना चाहते थे। उसके गर्भ में कई समानांतर विचार और समस्याएं विद्यमान हैं। इन्हें सुलझाए बिना आप अपने 75वें स्वतंत्रता दिवस की जयंती को भव्य नहीं बना सकते।
कोई भी समाज हर क्षण में तीन विचार एक साथ जीता है। वह हर क्षण अपने वर्तमान में अपने भूतकाल से सीख लेकर भविष्य की तैयारियां करता है, और अगर वो समाज इस लीक पर नहीं चल रहा है तो निश्चित तौर वह अपने लिए गंभीर नहीं है। इस समय का कालखंड आपको विचार करने और निर्णय लेने के लिए अधिक बाध्य करता है। मैं पहले ही ध्यान दिला चुका हूं कि यह पहला स्वतंत्रता दिवस है जब हमें इतनी अधिक पाबंदियों में रहना पड़ रहा है। लेकिन जैसा कि प्रधानमंत्री पूर्व में कह चुके हैं कि आपदा में अवसर तलाशे जाएं तो इसी क्रम में ये भी आवश्यक है कि हम इन्हीं पाबंदियों के बीच अपनी नई आज़ादी की कहानी को रच डालें।
भारत इस समय ऐसे दोराहे पर है जब उसे कोरोना संकट के बीच आई आर्थिक गिरावट से न केवल दो-दो हाथ करने हैं, बल्कि स्वयं को इस हद तक सशक्त करना है कि वह विश्व भर में आर्थिक महाशक्ति के तौर पर स्थापित हो सके। हमें इस कोरोना संकट के साथ, इस कोरोना संकट के बाद के अध्याय लिखने के लिए भूमिका बांध लेनी है।
प्रधानमंत्री ने जिन विषयों को लालकिले की प्राचीर से उठाया है, उनकी धरातलीय परिस्थितियों को जाने बिना आप भविष्य का खाका तैयार नहीं कर सकते। प्रधानमंत्री का कहना था कि आत्मनिर्भर भारत का स्वप्न तभी संभव है जब कृषि और किसान आत्मनिर्भर हो। वह उत्पादन में आत्मनिर्भरता की बात कर रहे हैं, वह युवाओं में कौशल विकास और रोजगार की संभावनाओं की बात कर रहे हैं, वह देश के कुटीर उद्योगों को मजबूत करने की बात कर रहे हैं। लेकिन यह सब संभव कैसे है?
पिछली सरकारों ने तमाम ग़लतियां की हैं। उसका दंश भारत आज तक झेल रहा हैं, लेकिन उन्होंने जो प्रयास किए हैं…वह चाहें धीमी गति से हुए हों, या तेज, लेकिन उनके कारण ही आज भारत का आभामंडल तेजोमय दिखाई देता है। वर्तमान सरकार की भी मंशा और प्रयासों पर मैं कोई प्रश्न नहीं खड़ा कर रहा, लेकिन उसकी योजानाओं और उनके क्रियान्वयन के आकलन को एक पत्रकार के रूप में करना मेरा धर्म है।
देश में इस समय अनेक योजनाएं संचालित हैं। उनमें से 80 फीसदी योजनाओं का लाभ पात्रों तक पहुंच रहा हो, ऐसा दिखाई नहीं पड़ता। मेरे इस बिंदु को काटने के लिए आप जरूर अनेक आंकड़े उपलब्ध करा दें, लेकिन आंकड़े, आकलन को प्रभावित नहीं करते। सच्चाई इससे इतर है जिससे सरकार में बैठे लोग भी मुंह नहीं मोड़ सकते।
हां, देश में पिछले वर्षों के मुकाबले रोजगार अधिक हुआ है, लेकिन बेरोजगारी भी कम नहीं हुई है। महंगाई दर बढ़ी ही है। योजनाओं के नियम और क्रियान्वयन में ऐसा गज़ब का विरोधाभास है कि नीयत साफ़ होने के बाद भी आप असफल हो रहे हैं। योजनाओं को लेकर बनाए गए नियम इतने उलझे हुए हैं कि उनका लाभ सही तरह से पात्रों तक नहीं पहुंच पा रहा हैं।
आपके पास कोई ऐसी योजना नहीं है जो प्रतिभावान युवाओं को आत्मनिर्भर बनने के अवसर देती हों। हां, जिनके पास पूर्व में आर्थिक शक्ति उपलब्ध है उसको ऋण उपलब्ध कराकर उसे अधिक संपन्न बनाने के अवसर अवश्य देती हैं। आपके पास कोई ऐसी योजना नहीं है जो नया रोजगार शुरू करने के लिए सस्ता विधिक सहायता तंत्र उपलब्ध कराती हो। एक नया रोजगार शुरू करने के लिए सिंगल विंडो सिस्टम देश में आज नहीं आ सका है।
नए रोजगार की आशाएं युवाओं से रखना कोई बुरी बात नहीं, युवा प्रतिभावान हैं, असीम संभावनाएं लिए हैं, वो रोजगार के नए अवसर उपलब्ध भी करा देगा। लेकिन उन अवसरों को बनाने के लिए जो अवसर उसे चाहिए वह सरकार उपलब्ध कराने में असमर्थ दिखाई दे रही हैं।
पिछली सरकारों ने भी योजनाओं के क्रियान्वयन के जो नियम बनाए थे, वे इसी तरह के विरोधाभासों को सहेजे हुए थे। यही कारण है कि हम पिछले 74 वर्षों से विकासशील देश की श्रेणी में मज़बूती से खुद को स्थापित किए हुए हैं। न इससे पीछे हटेंगे, न इससे आगे बढ़ेंगे। हर कालखंड नए शोध और नए प्रयोग के आधार पर अपने आगामी समय का प्रारूप तैयार करता है। लेकिन हम 74 साल पुराने कानूनों, उन्हीं नियमों को ढोने की मजबूरी ओढ़े खुद को घसीट रहे हैं।
इस 74वें स्वतंत्रता दिवस पर बेहतर होता कि प्रधानमंत्री उन कमियों और बाधाओं पर भी ध्यान केंद्रित कराते जो 74 वर्ष पूर्व हमारे मार्ग में एक सुनियोजित योजना के तहत खड़ी कर दी गईं थीं। वो ध्यान दिलाते की सत्ता हस्तांतरण की व्यवस्था में देश को अब स्वतंत्र होने के लिए क्या कुछ नए सिरे से करना है। सरकारें पिछली हो या मौजूदा, रीढ़ में कहीं तो कमजोरी है। इसलिए शायद सिर उठाकर चलने के स्वप्न देखने वाला देश न जाने क्यों विश्व पटल पर कमर झुकाए रहता है।
पिछले सात वर्षों में भारत विश्व पटल पर अपनी अलग पहचान बनाने में कामयाब हुआ है। लेकिन क्या आत्मनिर्भर भारत के मंत्र के साथ उसे सही में आत्मनिर्भर बनाने के प्रयास हो रहे हैं। इतने वर्षों में आप कामयाब हुए ऐसे कानून बनाने में जो इतने पेचीदा हैं कि एक सामान्य व्यक्ति उन्हें समझ ही न पाए। आप कामयाब हुए भारत की मूल सामाजिक व्यवस्था को नष्ट करने में, आप कामयाब हुए भारत की मूल आर्थिक व्यवस्था को नष्ट करने में। आत्मनिर्भर भारत का मंत्र देने की आवश्यकता यदि पड़ रही है तो यह साफ है कि भारत की अब तक की सरकारों ने सदियों से आत्मनिर्भर रहे भारत को किस हद तक परनिर्भर बना दिया है।
देश का युवा आज भी उन तार्किक योजनाओं और नियमों की बाट जोह रहा है जब उसे साधारण कागज़ी कार्यवाही के बाद अपना रोजगार शुरू करने दिया जाए। जब वह सरकार को महज़ ये बताए कि वह रोजगार शुरू करना चाहता है, और सरकार में बैठे ज़िम्मेदार अपनी ओर से उस तक सभी संसाधन उपलब्ध करा दें। देश के कुछ कुंठित ब्यूरोक्रेट्स के कारण अब तक तमाम योजनाओं का बंटाधार हो चुका है। व्यवस्था में बैठे कुछ जिम्मेदार अधिकारियों के कारण अच्छी योजनाएं बनती तो हैं, लेकिन नीचे बैठे लोगों में उनको लागू कराने की नीयत ही नहीं है। देश में सांसद हो या विधायक वह बुनियादी तौर पर अपने क्षेत्र की जनता से कटा हुआ है।
ऐसे में न तो सरकार तक जनता की बात पूरी तरह पहुंच रही है, और न ही जनता तक सरकार की बात। इसी संवाद रिक्तता के कारण देश में एक नई खाई बनती जा रही है। अधिकारी, नेता, जनप्रतिनिधि, सरकार इन चार पायों के भरोसे जनता की खाट बिछने की जगह खड़ी हुई पड़ी है।
74वें स्वतंत्रता दिवस पर जब प्रधानमंत्री का भाषण नए अवसरों और आशाओं को जन्म देने की बात कर रहा है, तब ज़रूरी है कि नए नियमों और कानूनों के फ्रेमवर्क पर भी काम किया जाए। हमें घिसीपिटी परंपरागत शैली से बाहर निकलकर व्यावहारिक नियमों और कानूनों को बनाना और लागू करना होगा। पेचीदा कानून हमारे विकास में बड़ी बाधा हैं, उलझे हुए नियम हमें बढ़ने से रोकते दिखाई दे रहे हैं। मुझे आशा है कि आत्मनिर्भर भारत बनाने की दिशा में कार्य कर रही ये सरकार अपने युवाओं को ऐसे अवसर, नियम और कानून जरूर उपलब्ध कराएगी जो उसकी राह को आसान करेंगे।
यदि ऐसा मुमकिन हो पाया तो निश्चित रूप से कोरोना संकट काल में आई ये आज़ादी की वर्षगांठ कोरोना संकट काल के बाद वर्षों तक याद की जाएगी। 2022 में अपनी आज़ादी के हीरक जयंती उत्सव में हम आपदा के इस अवसर को याद करेंगे। हम कह सकेंगे की पाबंदियों में आई एक आज़ादी ऐसी भी थी तो कोरोना के साथ, कोरोना के बाद हमको याद है।
स्वतंत्रता दिवस की अनंन-अशेष शुभकामनाओं के साथ…