ये वनवास बहुत लंबा था
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- अभिनव 'अभिन्न'
- August 5, 2020
- राजनीति
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लोकाभिरामं रनरङ्गधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्।
कारुण्यरूपं करुणाकरंतं श्रीरामचंद्रं शरणं प्रपद्ये ॥
अर्थ : मैं सम्पूर्ण लोकों में सुन्दर तथा रणक्रीडामें धीर, कमलनेत्र, रघुवंश नायक, करुणाकी मूर्ति और करुणाके भण्डार रुपी श्रीराम की शरण में हूं।
द्वार पै बन के लिए, रथ लाया रथवान।
राम, लषण, सीता चले, कर गणपति का ध्यान।
मचा अयोध्या में तभी इस प्रकार कोहराम।
वहीं अयोध्या रहेगी, जहां रहेंगे राम।।
और इस तरह कौशलपुर सूना हो गया। सूनी हो गई वो अयोध्या नगरी जिसके पुरवासियों के मन-मंदिर में बसते थे राम। कौन राम ? आखिर कौन हैं ये राम? ये प्रश्न तो न जाने कितने समय से चला आ रहा है। हर सवाली को जवाब अपने अनुसार मिला। जिसने जैसा खोजा राम उसको वैसे मिले।
एक राम दशरथ का बेटा,
एक राम घट-घट में लेटा।
एक राम का सकल पसारा,
एक राम है सबसे न्यारा॥
पंडित राधेश्याम ने अपनी रामायण में लिखा –
यह मायापति हैं राम कौन ? जिनकी इतनी धुन है मन में ?
क्या वही जानकी-जीवन हैं, जो व्याकुल बिचरे हैं वन में ?
राम अपनी सीता के लिए व्याकुल थे, अयोध्या अपने राम के लिए। 14 वर्षों का वनवास था। जो समाप्त हो गया था। लेकिन राघव राम का ये वनवास बहुत लंबा था। 500 वर्षों का वनवास। लेकिन इन 500 वर्षों ने ये किया कि पूरे भारत को अयोध्या बना दिया। कुछ ने राम को चित्रों में खोजा और कुछ ने चरित्र में ही ढाल लिया। कुछ राम को राजनीति में लाना चाहते थे और कुछ राममय राजनीति करना। लेकिन राम तो सब बंधनों से मुक्त स्वयं को लोकभावनाओं में जीवित रखे हुए थे। राम का जीवन सत्ता का लोलुप नहीं रहा। वाल्मीकि रामायण से लेकर वर्तमान भारत के कालखंड पर दृष्टि लेकर जाएं, आप पाएंगे कि राम सदा सिंहासन से दूर, लोक के समीप रहे। यही राम होना है। राम के कुल में अनेक प्रतापी पूर्वज हुए। इक्ष्वाकु, दशरथ, रघु, दिलीप, भगीरथ और भी अनेक। लेकिन कोई राघव के जैसा नहीं हुआ। यह सभी सिंहासन पर रूढ़ रहे। कोई वन तक नहीं गया, इसलिए लोक के मन तक नहीं गया। भगीरथ भी लोककल्याण के गंगा को धरती पर लाये, उन्हें समाज आज तक याद करता है। लेकिन पूजता नहीं है, क्योंकि गंगा को धरती पर लाने का प्राथमिक उद्देश्य लोककल्याण नहीं था, अपने पूर्वजों की मुक्ति था। लेकिन राम का लोककल्याणकारी भाव इससे बहुत पृथक, बहुत उदात्त था।
भारत अनूठी परंपराओं का देश है। यहां त्याग ही परमसुख है। यहां की परम्पराएं, आस्थाएं सभी कुछ त्याग की शिक्षा देती हैं। यहां परमपद उसी ने पाया है, जो त्यागी है। यह इस देश का मूल चरित्र है। इस बात को समझने के लिए ग्रंथ पलटने की आवश्यकता नहीं हैं। इसका मूल इससे समझ लें कि देश ने सत्ता की इच्छा रखने वाले नेहरू पर हमेशा दोषारोपण किया, वह कभी सर्वसाधारण के मन का हिस्सा नहीं बन सके। इसके विपरीत एक लंगोटी बांधकर जनता के साथ नंगे पांव चलने वाले गांधी जन-जन के मन में हैं। यही स्थिति राघव राम के साथ है। वह लोकभावनाओं के देव हैं। इसलिए देश के मूल में हैं। जन्म से लेकर मृत्यु तक इस देश का केंद्र कोई है तो वह हैं – राम। इस देश का समाज अपने पु़त्र का बचपन लड्डू गोपाल के जैसा देखना चाहता है। लेकिन बचपन की शरारतों के बाद उसे सदैव पु़त्र, पति, भाई, मित्र सभी संबंधों के रूप में राम चाहिए होते हैं। मैंने दो मिसरे राम पर लिखे थे –
राम नहीं है व्यक्ति, नाम की मर्यादा है
दुःख बहुत थे किंतु, कीर्ति उससे ज़्यादा है।
इससे अधिक मैं राम पर आज तक कुछ नहीं लिख पाया। शायद इसलिए क्योंकि राम का पूरा जीवन ऐसा ही था। राम सब कुछ कर सकते थे, लेकिन सदैव अपनी मर्यादाओं को निभाया। पूरे जीवन दुख भोगा। लेकिन कीर्ति उससे कहीं अधिक प्राप्त की। यही कारण है कि उनके साकेतधाम वापस जाने के नौ लाख वर्ष बाद भी वह जन-जन के मन में हैं। यही हमारे देश का चरित्र है, जो जितना बड़ा त्यागी, वह उतना बड़भागी। ईशोपनिषद का मंत्र भी हमें यही बताता है। त्येन त्यक्तेन भुंजीथा। त्याग पूर्वक इस संसार की वस्तुओं का भोग करें।
आज (5 अगस्त 2020) वह शुभ अवसर आया है जब राघव राम के संघर्ष को विश्राम मिलेगा। कलियुग में राघव का वनवास लंबा अवश्य था, लेकिन यह अयोध्या वापसी अब उन्हें कहीं जाने न देगी। स्वतंत्रता आंदोलन के बाद किसी आंदोलन ने सबसे लंबे समय तक संघर्ष किया है तो वह शायद राम मंदिर आंदोलन ही है। भारत का वृहद जनमानस यह चाहता था कि वह अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण होता देखे। कई आंखे इस आस में बंद हो गईं। हम सौभाग्यशाली हैं कि इस घड़ी को देख पा रहे हैं। आप इसकी राजनीति में न जाएं, केवल मूलतत्व तक जाएं, और वह मूल तत्व है – राम। भारत ने सदियों से किसी को आदर्श माना है तो राम को। स्वतंत्रता आंदोलन में देश की सबसे अधिक हानि करने वाले और द्वि-राष्ट्र की धारणा को जन्म देने वाले अल्लामा इक़बाल ने अपने जीवन में राम पर एक शेर लिखा। उसके लिए उनको सलाम बनता है, क्योंकि इस पूरे देश के चरित्र और उसकी भावना को इस एक शेर में उकेर दिया –
है राम के वजूद पे हिन्दोस्ताँ को नाज़
अहल-ए-नजर समझते हैं उनको इमाम-ए-हिंद
आज का अवसर इसी नाज़ का परिणाम है। कुछ फ़िरकापरस्त मुस्लिमों को छोड़ दें तो देश के आम मुसलमान ने सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले को स्वीकार किया। मैं अपने अब तक के पत्रकारिता के जीवन में कई ऐसे आम मुसलमानों से मिला जिन्होंने कभी इस बात पर ऐतराज़ नहीं किया कि आयोध्या में राममंदिर नहीं होना चाहिए। वह आहत थे तो केवल एक बात से, राम और राम मंदिर के राजनीतिकरण से। मैं भी इससे आहत था, न केवल आहत था, बल्कि असहमत भी था। असहमत था, राम पर हो रही राजनीति से। असहमत था, राम को ढाल बनाकर गिराए जा रहे राजनीति के स्तर से। असहमत था, राम में आस्था रखने से। असहमत था, राम में आस्थ जगवाने से। मैं इन सबसे असहमत था। इसलिए क्योंकि मैंने कभी राम में आस्था नहीं रखी। न मेरे दादा ने मुझे सिखाया कि राम में आस्था रखनी हैं। उन्होंने मुझे बताया कि आस्था उसमें होती है जो आप से जुड़े नहीं होते। जो आपका हिस्सा नहीं होते। राम हमसे अलग नहीं। राम हमारे लिए आस्था का विषय नहीं हैं, राम हमारे लिए अस्तित्व का विषय हैं। हमारी आस्थाएं बदल सकती हैं, भटक सकती हैं, कम हो सकती हैं, अधिक हो सकती हैं, टूट भी सकती हैं। लेकिन हमारा अस्तित्व, वो न बदल सकता है, न छूट सकता है, न भुलाया जा सकता है, न नकारा जा सकता है। शाश्वत है, तो केवल आपका अस्तित्व। जो आज भी है, कल भी रहेगा। राम इतने ही शाश्वत हैं, जितना हमारा अस्तित्व। जितना भारत का अस्तित्व। जो आज भी है और कल भी रहेगा।
इतिहास के पृष्ठ साक्षी हैं, जिसने जब-जब राम पर राजनीति की, जनता ने उसे औंधे मुंह गिराया, लेकिन राम को दिनों-दिन आकाश जितने ऊँचे सिंहासन पर अपने मन में स्थान दिया। आम भारतीय ने राम मंदिर आंदोलन का बेशक विरोध किया हो, लेकिन राम मंदिर का सदैव समर्थन किया। आज उस प्रतीक्षा का अंत हुआ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का पालन करने जा रहे हैं। राममंदिर के नींव का पत्थर रखने जा रहे हैं। लेकिन इतने भर से ये राह आसान नहीं होगी। केवल नींव में पत्थर रख देने भर से रामराज नहीं आ जाएगा। उन्हें रामराज और रामराज्य में अंतर को समझना होगा। देश के 130 करोड़ हिंदुस्तानियों को रामराज्य नहीं, रामराज चाहिए। रामराज आएगा, बाबा तुलसी के राम जैसे व्यवहार करने से –
मुखिया मुख सो चाहिए, खान-पान सब एक
पालहीं, पोसहीं एक सम, तुलसी सहित बिबेक।
इस नींव के साथ आप देश की नींव में रखें एक पत्थर सौहार्द का, एक पत्थर विश्वास का, एक पत्थर प्रेम का, एक पत्थर ईमानदारी का, एक पत्थर आरोग्य का, एक पत्थर सुरक्षा का। ये वो पत्थर हैं जो अयोध्या में राममंदिर बनाएं, न बनाएं, इस देश को मंदिर अवश्यक बना देंगे। इस देश को आपसे बहुत आशाएं हैं। ये देश आप पर विश्वास करता है, केवल आपके त्यागी व्यवहार के कारण। विपक्ष ने अनेक प्रश्न खड़े किए, लेकिन आप पर विश्वास करने वालों ने सब प्रश्नों पर आंखें मूंदी, आगे भी मूंदेंगे। लेकिन आप इन मूंदी हुई आंखों को जिन सपनों से सजा रहें हैं उन्हें विश्वास दिला दें कि जब आंखे खोली जाएंगी तो वो स्वप्न साकार होंगे। राम के भारत जैसा भारत बनाने के लिए आप भी आज कृतसंकल्प हों। राममंदिर के इस भूमि पूजन के साथ, भारत पूजन की भावना को बढ़ाएं। जिस राम ने लोकमंगल के लिए पूरा जीवन बिताया उस राघव के मंदिर की स्थापना के अवसर पर लोकमंगल का संकल्प लें। आप पर राम की कृपा हो।
जय राम जी की…