कोरोना : महामारी पर तय हो विश्व बिरादरी की जिम्मेदारी
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- अभिनव 'अभिन्न'
- March 31, 2020
- नज़रिया
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चीन से शुरू हुए कोरोना वायरस कोविड-19 ने आर्थिक रूप से सबसे ज्यादा यूरोप को प्रभावित किया है। इसमें भी इटली की अर्थव्यवस्था इससे सबसे ज्यादा प्रभावित हुई है। ऐसे में अब जरूरत है कि विश्व बिरादरी जिम्मेदारी और जवाबदेही तय करे। दवाओं के खोज और पेटेंट को लेकर नए नियम मानव कल्याण के लिए बनाए जाएं। ऐसे कानून बनें जो बीमारी का प्रारंभ होने वाले देश के प्रति जवाबदेही तय करते हों और दुनिया के छोटे देशों को आर्थिक बोझ से मुक्त करते हों।
विश्व भर में इन दिनों अपने पांव पसार रहा कोरोना वायरस कोविड-19 अब तक 5400 लोगों की जान ले चुका है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार करीब एक लाख 45 हजार लोग 14 मार्च तक इसकी चपेट में आ चुके हैं। दिन पर दिन यह संख्या बढ़ रही है। करीब 156 देश इस वायरस से प्रभावित हैं। ऐसे हालातों को देखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस वायरस से होने वाली बीमारी को पेनडेमिक यानी महामारी का दर्जा दिया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की घोषणा के बाद ही भारत ने भी इसको महामारी घोषित कर दिया है। अमेरिका, इटली, फ्रांस जैसे देश इसको महामारी घोषित कर चुके हैं। अमेरिका ने इसे राष्ट्रीय आपातकाल घोषित किया है। कोरोना से सबसे ज्यादा प्रभावित चीन है। लेकिन यदि प्रतिशत पर नजर डालें तो पुष्ट खबरों के अनुसार इटली ज्यादा प्रभावित है। चीन में आधिकारिक रूप से 3189 मौतें हो चुकी हैं। यहां कुल 80,824 लोग इस वायरस की चपेट में आए हैं। 65,573 ठीक हो चुके हैं। 3610 गंभीर हालत में हैं। करीब 12 हजार केस अभी निगरानी में हैं। प्रति मिलियन 56.2 लोग इसकी चपेट में हैं। जबकि इसके मुकाबले इटली में स्थिति कहीं ज्यादा भयावह है। यहां 21,157 लोग वायरस की चपेट में आए हैं। जिनमें से 1441 मौतें हो चुकी है। प्रति मिलियन 349.9 लोग इसकी चपेट में हैं। यूरोप के अधिकांश देशों में हालात भयावह होते जा रहे हैं। इटली में कोरोना के सबसे पहले दो मरीज चीन से गए विजिटर ही थे। उनके संपर्क में आने से वहां के एक स्थानीय व्यक्ति को कोरोना हुआ। जिसके बाद उसे पेशेंट वन नाम दिया गया। इसके बाद से वहां लगातार यह वायरस पांव पसार रहा है। अब इटली में लाॅकडाउन की स्थिति है। फ्रांस भी इससे बचा नहीं है। वहां भी लाॅकडाउन जैसे हालात बन चुके हैं। ईरान इससे बुरी तरह प्रभावित है। फिलहाल राहत की बात ये है कि भारत में प्रति मिलियन महज 0.1 ही इस वायरस की चपेट में आए हैं। लेकिन दिन पर दिन कोरोना पीड़ितों की संख्या बढ़ रही है। इस आलेख को पढ़ने तक यह आंकड़ा अपना शतक पूरा कर चुका होगा। इसमें से 10 हालांकि ठीक हो चुके हैं। लेकिन दो मौतें भी हो चुकी हैं। ऐसे में इसके प्रति सतर्क होने की जरूरत है। भारत सरकार ने महामारी निरोधक अधिनियम 1897 के सहारे इससे लड़ने के इंतजाम किए हैं।
कोरोना मानव जीवन के लिए समस्या बन रहा है। पूरी दुनिया जिस तरह से इससे लड़ रही है उसमें अधिकांश इंतजाम भारत की प्राचीन पद्धतियों पर आधारित हैं। विश्व इससे लड़ेगा और जितेगा भी। लेकिन इस सारी बहस से इतर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संधियों और कानूनों को मजबूत करने की जरूरत है। दुनिया में अब तक फैले सभी वायरस में से कोई भी भारत से नहीं पनपा है। जबकि सभी वायरस जनित रोगों से भारतीय बड़ी संख्या में प्रभावित रहे हैं। भारत सरकार प्रति वर्ष इन रोगों से लड़ने के लिए उपचार पर अरबों रूपये व्यय करती है। दूसरे देश भी इन रोगों से लड़ने के लिए अपने-अपने स्तर से तैयारियां कर रहे हैं। निश्चित रूप से दुनिया इससे पार पाने के उपाय खोज भी लेगी। लेकिन जब कभी ऐसी महामारी आती है उसमें मानव जीवन को क्षति होती है और देशों पर आर्थिक बोझ भी बढ़ता है।
कोरोना को चीन से पैदा हुआ माना जा रहा है। इसके पीछे भी कई धारणाएं मीडिया के माध्यम से लोगों तक पहुंच रही है। कोई इसे चीन के खान-पान के कारण पैदा हुआ मान रहा है। जबकि कुछ का कहना है कि यह चीन में जैविक हथियारों के परीक्षण के दौरान लीक होने से फैला है। सच्चाई क्या है यह कोई नहीं जानता। यह सभी जानते हैं कि चीन में मीडिया भारत की तरह मुक्त नहीं। इसलिए वहां क्या सच है या क्या झूठ यह वहां की सरकार तय करती है। लेकिन इस वायरस से यूरोप का सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है। न केवल जनहानि की दृष्टि से बल्कि आर्थिक रूप से इटली, ईरान, फ्रांस को बड़ा धक्का लगा है। लाॅकडाउन की स्थिति वहां के उद्योग धंधो, आर्थिक गतिविधियों, प्रति व्यक्ति आय सभी को प्रभावित करने वाली है। कोरोना प्रभावित देशों की मदद के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन, संयुक्त राष्ट्र फाउंडेशन और स्विस फाउंडेशन ने मिलकर एक सहायता कोष का गठन कर दिया है। मनुष्य का स्वभाव सहायता करना है। वो इस कोष में बड़ी मात्रा में सहायता करेगा भी। लेकिन जरा इस बीमारी के बाद दवा सिंडिकेट के बाजार, कारोबार, मुनाफे और सौदेबाजी की तरफ निगाह करें।
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संयुक्त राष्ट्र संघ, सार्क, जी8, जी20 तमाम संगठनों ने अपने-अपने स्तर पर बेहतर संबंधों के लिए नियम, कायदे, कानून समय-समय पर बनाए हैं। लेकिन अब तक महामारी जैसे विषय पर कोई कानून नहीं बनाया गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बेशक कोरोना को महामारी घोषित कर दिया है। लेकिन इससे बचाव के लिए उपाय में प्रयास कर रहे देशों के आर्थिक हितों के लिए कोई हदबंदी नहीं है। इससे पूर्व भी कई वायरस जनित रोग मानव जाति के लिए खतरा बने हैं। इनमें से पोलियो की ही बात करें तो भारत उससे बड़ी संख्या में प्रभावित रहा है। भारत सरकार उसकी वैक्सीन पर करोडों रूपये खर्च भी करती है। इसमें दवा कंपनियों का धंधा भी चलता है। दूसरे वायरस के साथ भी ऐसा ही है। ऐसे में अन्तरराष्ट्रीय संगठनों को अब आवश्यकता है विश्व स्तर पर ऐसे नियम और कानून बनाने की जिसमें सभी देशों को बाध्य किया जा सके। हालांकि अन्तरराष्ट्रीय कानून ऐसे कोई भी प्रावधान नहीं करता है। लेकिन जब दुनिया वैश्विक गांव की तरह हो गई है। हर देश अपनी संपन्नता और विकास के लिए एक दूसरे पर निर्भर भी है और उससे बेहतर संबंध भी बनाए हुए है। तब ऐसे में अंतरराष्ट्रीय संगठनों को लोकतांत्रिक मूल्यों का परिचय देते हुए अच्छे-बुरे की जिम्मेदारी भी तय करना जरूरी है।
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80 के दशक में फ्रांस के प्रयासों से स्वयंसेवी अन्तरराष्ट्रीय संगठन डाॅक्टर विदआउट बार्डर की नींव डाली गई। यह संगठन प्रतिवर्ष बढ़ता गया। यूरोप में इसके सकारात्मक असर भी देखने को मिले। पर्यावरण के मुद्दे पर विश्व के देशों ने अपने स्तर पर संधियां की हैं। उन्हें निभाया भी जा रहा है। अब बदले समय में स्वास्थ्य को लेकर अन्तरराष्ट्रीय नियम, कानून और संधियों की आवश्यकता है। कोरोना के दौरान पिछले कुछ समय में भारत ने जिस तरह से विश्व पटल पर अपनी नेतृत्व क्षमता का परिचय दिया है वह काबिल-ए-तारीफ है। निश्चित रूप से जब मानव जाति एक रोग से लड़ रही हो तब किसी भी प्रकार की राजनीतिक या सामरिक कूटनीति की बात करना ठीक नहीं होगा। लेकिन भविष्य की रणनीति के लिए तैयारिया तो करनी ही होंगी। चीन हमारा पड़ोसी और मित्र राष्ट्र होने के साथ ही एक प्रतिद्वंद्वी भी है। हम कोरोना से आए विश्व पर खतरे को चीन की निगाह से न भी देखें तो भारत को अपनी सुरक्षा के लिए विश्व पटल पर इस मुद्दे को उठाने की जरूरत है।
भारत की ओर से संयुक्त राष्ट्र संघ में स्थायी सदस्य सयैद अकबरूद्दीन ने जब शांति और अहिंसा का मुद्दा उठाया तो पूरे विश्व का समर्थन उसे मिला था। अब जरूरत है मानव कल्याण के लिए स्वास्थ्य के क्षेत्र में इन मुद्दों को उठाने की। विश्व में यदि कोई बीमारी महामारी का रूप ले और उसकी वैक्सीन उपलब्ध न हो तो आर्थिक रूप से कमजोर देश विकसित और संपन्न देशों की ओर मुंह ताकते हैं। भारतीय संविधान का अनुच्छेद हर नागरिक की जीवन की रक्षा की बात करता है। यह अवधारणा अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन और यूएनओ की भी है। ऐसे में महामारी को लेकर कड़े कानून बनाने की जरूरत है। कोई महामारी कहां से फैली यह कोई नहीं जानता, लेकिन कानून की दृष्टि से अगर देखें तो माना जाएगा कि जहां उस बीमारी से ग्रसित पहला केस मिला उसे ही उसका जन्म स्थान माना जाएगा। ऐसे में कोरोना का प्रारंभ चीन से ही माना जाएगा। कानून साक्ष्यों के आधार पर ही चलता है। ऐसे में विश्व समुदाय को जरूरत है चीन की जिम्मेदारी तय करने की। पूरी दुनिया में चिकित्सा विज्ञान में विकसित देश कोरोना की एंटीडोज तलाश करने में लगे हैं। करोड़ों डालर का इस पर खर्च आने वाला है। ऐसे में यदि कोई एक देश इसकी तलाश कर भी लेता है तो वह इसके बल पर अच्छी कमाई करेगा। दवा कंपनियों का मार्केट बढ़ेगा। चीन के वैज्ञानिक सबसे ज्यादा तेजी से इसकी एंटीडोज तलाशने में लगे हैं। क्योंकि वहां सबसे ज्यादा संख्या में इस वायरस से संक्रमित मरीज मिले हैं। लेकिन कानूनी दृष्टि से यदि जिम्मेदार ठहराना हो तो क्या चीन को इस बीमारी के प्रसार का जिम्मेदार नहीं ठहराया जाना चाहिए ? क्या विश्व समुदाय को जरूरत नहीं है कि उसकी जवाबदेही तय करे ? चीन यदि इसकी एंटीडोज पहले बना लेता है तो क्या विश्व समुदाय उस पर दवाब बना सकता है कि वह मानव कल्याण के लिए इसे कम दाम पर उपलब्ध कराए। नैतिकता के आधार पर चीन चाहे तो ऐसा कर सकता है। लेकिन कोई अन्तरराष्ट्रीय कानून ऐसा नहीं है तो इसके लिए चीन को बाध्य करें। या किसी भी देश को बाध्य करे। जो भी देश इसका एंटीडोज बनाएगा वह अपने फार्मूला को पेटेंट कराएगा और दुनिया के देशों से बड़ा मुनाफा कमाएगा। चीन के चाल-चलन और व्यवहार को कौन नहीं जानता। उसके लिए नैतिकता जैसे मूल्य मायने नहीं रखते, आर्थिक लाभ और सौदेबाजी उसकी प्राथमिकता रही है।
पेटेंट कराने का कानून भी पेचीदा है। यदि किसी व्यक्ति विशेष के माध्यम से कोई खोज या आविष्कार किया गया है तो उसका पेटेंट समझ आता है। लेकिन महामारी जैसी स्थिति में एंटीडोज दवा का पेटेंट सौदेबाजी से ज्यादा कुछ नहीं। इसमें एक-दो व्यक्ति नहीं बल्कि पूरे देश के तमाम वैज्ञानिक अपने बौद्धिक कौशल का प्रयोग करते हैं। यह श्रेय उस देश को जाता है। लेकिन बीमारी जब फैलते हुए राष्ट्र की सीमाओं का ध्यान नहीं रखती तो उसके इलाज के लिए भी हमें राष्ट्र की उपलब्धियों का ध्यान नहीं रखना चाहिए। प्रयोग अपनी जगह हैं, आविष्कार अपनी जगह, लेकिन मानव कल्याण अपनी जगह है। कोरोना के खतरे के बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन और यूएनओ को चाहिए कि इस दिशा में पहल करे। जब आप आणविक हथियारों से एक कदम आगे बढ़कर जैविक हथियारों से नुकसान पहुंचाने की दिशा में बढ़ चुके हैं तब अन्तरराष्ट्रीय समुदाय को कड़े कानून बनाने और जवाबदेही तय करने की जरूरत है। यदि चीन के वुहान में जैविक हथियारों के प्रयोग के दौरान वायरस लीक होने से बनी इस समस्या की कथित कहानी को सच मान लिया जाए तो यह संकेत बुरे हैं। मुमकिन है कि यदि सच सामने आए तो चीन को विश्व बिरादरी में शर्मिंदा होना पड़े। लेकिन इस नुकसान के लिए जवाबदेही तो तय करनी ही होगी। यूएनओ को चाहिए कि महामारी जैसी स्थिति में दवा की खोज को आर्थिक लाभ से मुक्त रखा जाए। जिस देश से महामारी फैलना शुरू हुई है उस देश के दवा खोजे जाने के बाद उस फार्मूले को मानव कल्याण के लिए बिना किसी सौदेबाजी के विश्व समुदाय के साथ साझा किया जाए। चीन से गए जिन दो विजिटर के कारण इटली में यह बीमारी फैली उसके चलते आज इटली आर्थिक नुकसान झेल रहा है। ऐसे में यदि विश्व समुदाय किसी की जिम्मेदारी तय नहीं करेगा तो आने वाले समय में भी यह लापरवाही होती रहेगी।
मुमकिन है कि इस दिशा में कदम उठाने पर किसी भी देश को आपत्ति हो ही सकती है। लेकिन आर्थिक रूप से महाशक्ति बन चुके देश छोटे देशों की ओर देखें। प्रकृति का सिद्धांत उन्हें भी स्वतंत्र रूप से विकास करने की छूट देता हैं। ऐसे में भारत को इस दिशा में पहल करने की जरूरत हैं। हो सकता है कि कुछ आर्थिक ताकतें इसका समर्थन न करें लेकिन तमाम देश इसके पक्ष में आएंगे।